गुरुवार, 23 जनवरी 2025

एग्रीस्टैक योजना क्या है?

“AgriStack” भारत सरकार की एक डिजिटल पहल है जिसका उद्देश्य देश के कृषि क्षेत्र में डिजिटल परिवर्तन लाना है। 

एग्रीस्टैक योजना क्या है?

यह किसानों के लिए एक समर्पित डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म तैयार करता है, जिसमें उनके डेटा को इकट्ठा कर कृषि योजनाओं, सेवाओं और फसलों की उपज को बेहतर बनाने में मदद मिलती है।


मुख्य बिंदु:

1. डिजिटल किसान डेटाबेस:

हर किसान को एक विशिष्ट पहचान संख्या (Unique Farmer ID) दी जाएगी, जो उनके आधार कार्ड या अन्य पहचान दस्तावेज़ से जुड़ी होगी।

इसमें किसान की भूमि, फसल, और वित्तीय स्थिति की जानकारी शामिल होगी।

2. लाभ:

किसानों को सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे और तेज़ी से मिलेगा।

कृषि सब्सिडी, बीमा और क्रेडिट जैसी सेवाओं में पारदर्शिता बढ़ेगी।

फसल उत्पादन, जलवायु और बाजार मूल्य जैसी जानकारी डिजिटल रूप से उपलब्ध होगी।

3. टेक्नोलॉजी का उपयोग:

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML), और डेटा एनालिटिक्स जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग।

GIS (Geographic Information System) और रिमोट सेंसिंग से भूमि की बेहतर मॉनिटरिंग।

4. चुनौतियां:

किसानों का डेटा सुरक्षा और गोपनीयता।

तकनीकी जानकारी और डिजिटल साक्षरता की कमी।

सही ढंग से डेटा एकत्र और प्रबंधित करना।


यह पहल क्यों महत्वपूर्ण है?


AgriStack से खेती के पारंपरिक तरीकों को स्मार्ट और टेक्नोलॉजी-आधारित बनाया जा सकता है। यह छोटे और सीमांत किसानों के लिए विशेष रूप से मददगार हो सकता है, जिससे वे सरकारी योजनाओं का अधिकतम लाभ उठा सकें।


गुरुवार, 16 जनवरी 2025

गेहूं में खाद छिड़कने का सही समय और तरीका

गेहूं में खाद छिड़कने का सही समय और तरीका फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

गेहूं में खाद छिड़कने का सही समय और तरीका

सही समय पर और सही मात्रा में खाद का उपयोग करने से फसल को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं।

गेहूं में खाद छिड़कने का सही समय

1. बुवाई से पहले (बेसल ड्रेसिंग)

  1.  खाद: नाइट्रोजन (यूरिया), फॉस्फोरस (डीएपी), और पोटाश (एमओपी)।
  2. समय: बुवाई से पहले खेत की जुताई करते समय। 

 तरीका:

  1.  फॉस्फोरस और पोटाश को डीएपी या सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP) के रूप में डालें।
  2.  नाइट्रोजन की कुल मात्रा का 1/3 भाग यूरिया के रूप में मिलाएं।

2. पहली सिंचाई के समय (क्रॉप स्टेज: Tillering)

  1. समय: बुवाई के 20-25 दिन बाद, जब पहली सिंचाई की जाती है।
  2. खाद: यूरिया (नाइट्रोजन)।

 तरीका:

  1. 1/3 नाइट्रोजन (यूरिया) को पानी में घोलकर सिंचाई के साथ खेत में डालें।
  2. खेत में नमी होनी चाहिए ताकि यूरिया प्रभावी हो।

3. दूसरी सिंचाई के समय (क्रॉप स्टेज: Stem Elongation)

  1. समय: बुवाई के 40-45 दिन बाद।
  2. खाद: शेष बची नाइट्रोजन।

 तरीका:

  1.  यूरिया को छिड़काव या सिंचाई के माध्यम से डालें।
  2.  नमी सुनिश्चित करें।

4. गर्भावस्था चरण (Booting Stage)

  1.  समय: बुवाई के 60-70 दिन बाद, जब बालियां निकलने की प्रक्रिया शुरू होती है।
  2.  खाद: सूक्ष्म पोषक तत्व (जिंक, सल्फर)।

तरीका:

  1.  जिंक सल्फेट या सल्फर का छिड़काव स्प्रेयर द्वारा करें।

खाद डालने के सही तरीके


1. समान रूप से वितरण:

  1. यूरिया का छिड़काव या सिंचाई के साथ इसे सही अनुपात में खेत में समान रूप से फैलाएं।
  2. खेत में खाद का असमान वितरण उत्पादन को प्रभावित कर सकता है।

2. खेत की नमी का ध्यान:

  1.  खाद डालने से पहले खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
  2.  सूखे खेत में खाद डालने से वह प्रभावी नहीं होगा और पौधों तक पोषक तत्व नहीं पहुंच पाएंगे।

3. सिंचाई के साथ डालना:

  1. नाइट्रोजन आधारित खाद को सिंचाई के पानी के साथ डालने से यह पौधों तक जल्दी पहुंचती है।

4. फॉस्फोरस और पोटाश की समय पर आपूर्ति:

  1. फॉस्फोरस और पोटाश को बुवाई के समय ही डालें, क्योंकि ये धीरे-धीरे घुलते हैं।

5. अत्यधिक उपयोग से बचें:

  1.  खाद का अत्यधिक उपयोग मिट्टी को क्षारीय बना सकता है और फसल को नुकसान पहुंचा सकता है।

सुझाव

  1.  मिट्टी परीक्षण (Soil Testing) कराकर ही खाद की मात्रा तय करें।
  2.  सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक, सल्फर और बोरॉन का भी ध्यान रखें।
  3. जैविक खाद (कंपोस्ट या गोबर खाद) का उपयोग करें ताकि मिट्टी की उर्वरता बढ़े।

यदि आप क्षेत्र विशेष के हिसाब से सुझाव चाहते हैं, तो बताएं!

मंगलवार, 14 जनवरी 2025

गेहूं की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग

गेहूँ की बुवाई रबी में की जाती है, इसलिए स्वाभाविक तौर पर यह ठंडे तापमान को पसंद करने वाली फसल है। गेहूँ की अच्छी वानस्पतिक वृद्धि के लिए ठंडक होना ज़रूरी है; लेकिन अत्यधिक ठंड की वजह से पहली सिंचाई और कहीं कहीं पर दूसरी सिंचाई की वजह से गेहूँ की नीचे की पत्तियाँ पीली हो रही हैं। इसकी वजह से गेहूँ उत्पादक किसान बहुत चिंतित हैं, उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर इसका सही कारण क्या है। सही जवाब नहीं मिलने की वजह से किसान चिंतित हैं।

गेहूं की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग

गेहूं की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग:

गेहूं की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनके नियंत्रण के उपाय निम्नलिखित हैं:

1. कंडुआ रोग (Smut Disease)

  1. लक्षण: बालियों में दानों की जगह काले पाउडर जैसा कवक दिखाई देता है।
  2. नियंत्रण:
  3. बीज शोधन करें: कार्बेन्डाज़िम या थीरम 2-3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से लगाएं।
  4. रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें।

2. जड़ गलन रोग (Root Rot)

  1. लक्षण: जड़ें सड़ने लगती हैं, पौधे मुरझा जाते हैं।
  2. नियंत्रण:
  3. अच्छी जल निकासी सुनिश्चित करें।
  4. जैविक कवकनाशक, जैसे ट्राइकोडर्मा का प्रयोग करें।

3. झुलसा रोग (Leaf Blight)

  1.  लक्षण: पत्तियों पर भूरे-भूरे धब्बे दिखाई देते हैं जो धीरे-धीरे बढ़ते हैं।
  2.  नियंत्रण:
  3.  मैनकोज़ेब या कार्बेन्डाज़िम का छिड़काव करें।
  4.  फसल चक्र अपनाएं।

4. गेरुई रोग (Rust Disease)

  1.  लक्षण:
  2.  पत्तियों पर नारंगी या भूरे रंग के छोटे-छोटे धब्बे।
  3.  यह तीन प्रकार का हो सकता है: पत्ती गेरुई, तना गेरुई, और धारी गेरुई।
  4.  नियंत्रण:
  5.  रोग प्रतिरोधी किस्में लगाएं।
  6.  प्रोपिकोनाजोल या ट्रायडिमेफॉन का छिड़काव करें।

5. धानक रोग (Powdery Mildew)

  1.  लक्षण: पत्तियों पर सफेद पाउडर जैसी परत बन जाती है।
  2.  नियंत्रण:
  3.  सल्फर युक्त फफूंदनाशक, जैसे वेटेबल सल्फर का उपयोग करें।

6. जैविक धब्बा रोग (Spot Blotch)

  1.  लक्षण: पत्तियों और तनों पर बड़े भूरे धब्बे।
  2.  नियंत्रण:
  3.  संतुलित उर्वरक का उपयोग करें।
  4.  रोग ग्रस्त हिस्सों को हटा दें।

7. फसल झुलसन (Loose Smut)

  1.  लक्षण: बालियां पूरी तरह से काली पड़ जाती हैं।
  2.  नियंत्रण:
  3.  बीज शोधन करें।
  4.  रोग मुक्त बीज का उपयोग करें।

8. मोल्या रोग (Karnal Bunt)

  1.  लक्षण: दानों में काले धब्बे और गंध आती है।
  2.  नियंत्रण:
  3.  2-2.5 ग्राम थीरम या कार्बेन्डाज़िम से बीज उपचार करें।

सामान्य रोकथाम उपाय:

  1.  बीज शोधन: बीज को कवकनाशकों और जैविक उपचार से पहले शुद्ध करें।
  2.  फसल चक्र: गेहूं के बाद अन्य फसलों का रोपण करें।
  3.  सिंचाई: जलभराव से बचें।
  4.  नियमित निगरानी: समय-समय पर फसल की निगरानी करें।
किसान भाई इन उपायों को अपनाकर आप गेहूं की फसल को रोगों से बचा सकते हैं।

सोमवार, 13 जनवरी 2025

प्याज की खेती कैसे करें?

प्याज की खेती लाभदायक होती है, लेकिन इसके लिए सही तकनीक और प्रबंधन की जरूरत होती है।

प्याज की खेती कैसे करें?


प्याज की खेती कैसे करें? नीचे प्याज की खेती का पूरा तरीका दिया गया है:

1. जलवायु और मिट्टी का चयन:

जलवायु:

प्याज ठंडे और शुष्क जलवायु में अच्छी तरह उगता है। अधिक बारिश और नमी से फसल खराब हो सकती है।

तापमान: 13-35 डिग्री सेल्सियस।

मिट्टी:

प्याज के लिए दोमट मिट्टी या बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है।

पीएच स्तर: 6.0 से 7.5।

जल निकासी अच्छी होनी चाहिए।


2. भूमि की तैयारी:

खेत को अच्छी तरह से जोतें और मिट्टी को भुरभुरा करें।

15-20 टन गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर डालें।

मिट्टी को समतल और जल निकासी योग्य बनाएं।

बुवाई से पहले खेत में नमी सुनिश्चित करें।


3. बीज चयन और नर्सरी प्रबंधन:

बीज चयन:

प्रमाणित और गुणवत्तापूर्ण बीज का उपयोग करें।

बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 5-6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

नर्सरी तैयार करना:

नर्सरी के लिए मिट्टी को भुरभुरी बनाएं।

बीजों को 1-1.5 सेमी गहराई पर बोएं।

बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करें।

45-50 दिनों में पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।


4. रोपाई (Transplanting):

पौधे को 10-15 सेमी की दूरी पर और कतार से कतार की दूरी 30 सेमी रखें।

रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करें।


5. सिंचाई प्रबंधन:

पहली सिंचाई तुरंत करें।

इसके बाद हर 7-10 दिन पर सिंचाई करें।

कटाई से 15 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें।


6. उर्वरक और खाद:

प्राथमिक खाद:

नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की आवश्यकता होती है।

120:60:60 किलो एनपीके प्रति हेक्टेयर डालें।

गोबर की खाद:

15-20 टन प्रति हेक्टेयर।


7. कीट और रोग नियंत्रण:

मुख्य कीट:

प्याज की मक्खी, थ्रिप्स।

जैविक या रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग करें।

मुख्य रोग:

फफूंद और जड़ सड़न।

कवकनाशकों का छिड़काव करें।


8. कटाई और भंडारण:

जब प्याज के पत्ते पीले होकर गिरने लगें, तो कटाई करें।

प्याज को 10-15 दिनों तक धूप में सुखाएं।

सुखाने के बाद हवादार जगह पर भंडारण करें।


उपज:


सही देखभाल से 80-100 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।


नोट: अपनी भूमि और मौसम के अनुसार खेती में बदलाव करें।

शनिवार, 11 जनवरी 2025

गेहूं की फसल में होने वाले प्रमुख रोग और उनके उपचार

गेहूं की खेती में कई तरह के रोग फसल की उपज और गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं। यदि इन रोगों की पहचान समय पर कर ली जाए और उनका सही तरीके से उपचार किया जाए, तो नुकसान से बचा जा सकता है। यहां गेहूं की फसल में होने वाले मुख्य रोगों और उनके उपचार की जानकारी दी गई है।

गेहूं की फसल में होने वाले प्रमुख रोग और उनके उपचार


गेहूं की फसल में होने वाले प्रमुख रोग और उनके उपचार


1. पत्ती झुलसा रोग (Leaf Blight)


लक्षण:

पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं।

रोग बढ़ने पर धब्बे बड़े होकर पूरी पत्ती को सुखा देते हैं।


उपचार:

बुवाई के समय बीज को थीरम या कैप्टान (2.5 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचारित करें।

रोग दिखने पर मैनकोज़ेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।


2. करनाल बंट (Karnal Bunt)


लक्षण:

दानों के ऊपर काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।

प्रभावित दाने सड़ने लगते हैं और बदबू आने लगती है।


उपचार:

प्रमाणित और रोगमुक्त बीज का उपयोग करें।

खेत की गहरी जुताई करें और बुवाई के लिए फसल चक्र अपनाएं।

बीज उपचार: बीज को कैप्टान या कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें।


3. जड़ गलन रोग (Root Rot)


लक्षण:

पौधे की जड़ें सड़ने लगती हैं।

पौधे का विकास रुक जाता है, और वे पीले पड़कर सूखने लगते हैं।


उपचार:

खेत में जल निकासी का उचित प्रबंधन करें।

ट्राइकोडर्मा का 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपयोग करें।

बुवाई से पहले बीज को कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें।


4. गेरुई रोग (Rust)


प्रकार:

पत्ती गेरुई (Leaf Rust)

तना गेरुई (Stem Rust)

पीली गेरुई (Yellow Rust)


लक्षण:

पत्तियों या तनों पर गेरुए या पीले रंग के धब्बे।

रोग बढ़ने पर पौधा कमजोर होकर सूखने लगता है।


उपचार:

रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें।

पहले लक्षण दिखने पर हेक्साकोनाज़ोल या प्रोपिकोनाज़ोल का 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।


5. चूर्णी फफूंदी (Powdery Mildew)


लक्षण:

पत्तियों और तनों पर सफेद पाउडर जैसा आवरण बनता है।

रोग बढ़ने पर पत्तियां झड़ने लगती हैं।


उपचार:

रोग दिखने पर सल्फर 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

पत्तियों को साफ रखने और खेत को हवादार बनाने पर ध्यान दें।


6. उकठा रोग (Wilt Disease)


लक्षण:

पौधे अचानक मुरझाने लगते हैं।

जड़ों में सूजन और सड़न हो जाती है।


उपचार:

खेत की सफाई और फसल चक्र का पालन करें।

बीज को ट्राइकोडर्मा के घोल से उपचारित करें।


7. ब्लास्ट रोग (Wheat Blast)


लक्षण:

फसल के कानों (spikes) पर भूरे-हरे धब्बे बनते हैं।

दाने भरने से पहले ही सूखने लगते हैं।


उपचार:

रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें।

ट्राइकोडर्मा आधारित जैविक उपचार अपनाएं।

फसल पर स्ट्रोबिलुरिन या ट्राईएज़ोल आधारित फफूंदनाशक का छिड़काव करें।


रोगों से बचाव के लिए सामान्य सुझाव

1. फसल चक्र (Crop Rotation):

गेहूं के बाद दलहनी फसलें (जैसे चना या अरहर) लगाएं।

2. संतुलित उर्वरक का उपयोग:

अधिक नाइट्रोजन का उपयोग रोग फैलने की संभावना बढ़ाता है।

3. साफ-सफाई:

पुराने पौधे के अवशेषों को खेत से हटाएं।

4. समय पर बुवाई:

सही समय पर बुवाई करने से कई रोगों से बचाव होता है।

5. बीज उपचार:

हमेशा प्रमाणित और उपचारित बीज का उपयोग करें।


गेहूं की फसल में रोग नियंत्रण के लिए समय पर पहचान और उचित उपाय जरूरी हैं। इन रोग प्रबंधन तरीकों से किसान अपनी उपज और लाभ को बढ़ा सकते हैं।